प्रस्तुत पुस्तक भारतेन्दु से लेकर समसामयिक कविता तक में विद्यमान नए पाठ की सम्भावना का संधान करते हुए उसका वस्तुनिष्ठ एवं गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसमें भारतेन्दु का काव्यदर्शन, शलाकापुरुष महावीर प्रसाद द्विवेदी की नारी चेतना, साकेत की उर्मिला का पुनर्पाठ, गुप्तजी की कैकेयी का नूतन पक्ष, जयशंकर प्रसाद के पुनर्मूल्यांकन के ठोस आयाम, प्रसाद साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का स्वरूप, कामायनी में प्रकृति-चित्रण का स्वरूप, कामायनी: एक उत्तर आधुनिक विमर्श, स्त्री-विमर्श और प्रसाद काव्य के शिखर नारी चरित्र, निराला की आलोचना दृष्टि का विश्लेषण, दिनकर का कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी का पुनर्पाठ, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के काव्य में राष्ट्रीय चेतना, अज्ञेय के काव्य में संवेदनशीलता, भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य में गांधीवादी चेतना, नरेश मेहता का संवेदनात्मक औदात्य, मुक्तककार बेकल, अन्तस् के स्वर: कवि मन की पारदर्शी अभिव्यक्ति, धूमिल अर्थात् कविता में लोकतन्त्र, गजल दुष्यन्त के बाद: एक विश्लेषण, कविता का समाजशास्त्र एवं शोभनाथ यादव की कविताएँ, कविताओं का सौन्दर्यशास्त्र और शोभनाथ की कविताएँ, रुद्रावतार: अद्भुत भाषा सामर्थ्य की विलक्षण कविता, ‘संशयात्मा’ के खतरे से आगाह कराती कविताएँ, हिन्दी गजल का दूसरा शिखर: दीक्षित दनकौरी, गजल का अन्दाज ‘कुछ और तरह से भी’, चहचहाते प्यार की गन्ध से घर-बार महकाते गीत, सामाजिक प्रतिब(ता का दलित-स्त्रीवादी वृत्त, समकालीन हिन्दी कविता: दशा एवं दिशा तथा समकालीन कविता के सामाजिक सरोकार जैसे विषयों के अन्तर्गत इस युग के समूचे काव्य का विशद् विश्लेषण किया गया है। साथ ही परिशिष्ट के अन्तर्गत ‘जन अमरता के गायक विंदा करंदीकर’ तथा ‘परम्परा एवं आधुनिकता के समरस कवि अरुण कोलटकर’ जैसे शीर्षकों के अन्तर्गत मराठी के दो शिखर कवियों का सम्यक् विश्लेषण किया गया है।
छात्रों, मनीषियों, चिन्तकों तथा सामान्य पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी यह पुस्तक आधुनिक काव्य पर विशिष्ट अध्ययन होने के साथ-साथ नवीन समीक्षात्मक प्रतिमानों के संधान द्वारा उसका पुनर्पाठ तैयार करने का एक गम्भीर और साहसिक प्रयास है।